नव वर्ष की पूर्व संध्या
नए साल की पूर्व संध्या पर मैं अकेली ही
थी क्योंकि रचना पिछली रात को ही अपने माता पिता के पास चली गई थी। मैंने
अपने दो-तीन दोस्तों को फोन किया ताकि कुछ मज़ा कर सकूँ परन्तु सब का पहले
से ही कुछ ना कुछ प्रोग्राम बना हुआ था। तब मैंने सुनील को फोन किया और
उसका प्रोग्राम पूछा।
उसने कहा कि वो आ तो सकता है परन्तु जल्दी ही चला जाएगा क्योंकि उसे भी अपने परिवार के साथ कहीं जाना था।
थोड़ी देर के बाद सुनील ने मुझे फोन किया और कहा कि एक लड़का है अगर मैं चाहूँ तो वो परिचय करवा सकता है। मेरे पूछने पर उसने बताया कि वो लड़का उसके साथ ही काम करता है और मैंने उसे देखा भी हुआ है। चूँकि मैं वैसे भी अकेली थी इसलिए मैंने हामी भर दी।
शाम को कोई 05.00 बजे सुनील एक लड़के के साथ मेरे घर आया। मैंने उस लड़के को पहचान लिया, वह सुनील के साथ ही काम करता था और एक बार सुनील के साथ मेरे ऑफिस में भी आया था।
सुनील ने दलवीर से मेरा परिचय करवाया। दलवीर एक ऊँची कद काठी का लड़का था, 5'11" कद फूली हुई छाती और चौड़े कंधे।
मैं सोचने लगी कि कहीं ऐसा ना हो कि लंड के मामले में दलवीर फिसड्डी हो। फिर सोचने लगी कि एक बार तो चोद ही लेगा परंतु मैं नहीं जानती थी कि नव वर्ष की यह पूर्व संध्या मुझे हमेशा याद रहने वाली थी।
बातों बातों में सुनील ने दलवीर से कहा कि जल्दी में वो जूस भूल गया है तो दलवीर जूस लेने चला गया। मैं रसोई में गई तो सुनील भी पीछे पीछे आ गया और कहने लगा- शालिनी, तुम जैसा चाहो दलवीर के साथ वैसा ही मज़ा कर सकती हो। मैं सिर्फ एक बात बताना चाहूँगा कि दलवीर का लंड जल्दी से खड़ा नहीं होता परंतु एक बार खड़ा हो जाए तो जब तक तीन चार बार झड़ ना जाए तब तक इसका लंड ठण्डा भी नहीं होता। मैं तो कई बार टूअर पर देख चुका हूँ, आखिर में लड़की ही इसको हाथ जोड़ कर कहती है कि छोड़ दो अब तो शरीर में जान नहीं रही ! इसलिए अगर तुम चाहो तो मैं अभी भी उसको साथ में वापिस ले जा सकता हूँ।
मैंने कहा- नहीं ! दलवीर को यहीं रहने दो और अगर कुछ लगा तो मैं तुम्हें फोन कर दूँगी।
तभी दलवीर वापिस आ गया और सुनील ने उसको कहा- यार दलवीर, फटाफट दो पैग पिला दे, मैंने जाना है। तुम दोनों आपस में मज़ा करते रहना।
मैंने दलवीर को गिलास दिए तो उसने अपने और सुनील के लिए वोदका के पैग बनाये और मेरी ओर देखने लगा।
मैंने कहा- नहीं, अभी आप दोनों लो, सुनील के जाने के बाद देखेंगे।
कुछ ही देर में सुनील चला गया।
तब दलवीर ने मुझसे पूछा- कहीं चलने का प्रोग्राम है या घर पर ही रहना है?
इस पर मैंने कहा- चलो बाज़ार से कुछ सामान ले कर आते हैं।
फिर मैं उसके साथ उसकी मोटरसाइकिल पर चल पड़ी। बाहर बहुत ही ठिठुरन वाली ठण्ड थी। मैंने अपने दोनों हाथ उसकी कमर पर लपेट लिए और उससे चिपक कर बैठ गई। हम दोनों एक सार्वजनिक मनोरंजन स्थल पर चले गए। वहाँ बहुत सारे लड़के लड़कियाँ मस्ती के मूड में घूम रहे थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
हमने पिज्ज़ा आदि खाया और फिर कुछ खाने का सामान खरीद कर घर आ गए। आते ही मैंने जल्दी से हीटर चला दिया ताकि ठण्ड से कुछ आराम मिले। दलवीर ने अपनी जैकेट उतार कर रखी और बाथरूम में घुस गया। मैंने जल्दी से मेज़ साफ़ करके नए गिलास इत्यादि रख दिए और वोदका की बोतल उठा कर रसोई में रख दी। दलवीर ने बाहर आकर इधर उधर बोतल के लिए देखा तो मैंने उसे एक आयातित वोदका की बोतल देकर कहा कि हम दोनों अपने नव वर्ष की पूर्व संध्या का मज़ा इसके साथ करेंगे।
दलवीर बोतल को बड़े ध्यान से देखता हुआ कुछ पढ़ रहा था कि मैंने उसके साथ बैठ कर उसकी बाँह पकड़ कर हँसते हुए पूछा- क्या देख रहे हो कि सील कैसे तोड़नी है?
इस पर दलवीर बोला- सील तो बहुत तोड़ीं हैं और अभी भी तोड़ सकता हूँ। फिलहाल तो देख रहा हूँ कि यह कहाँ की बनी हुई है?
फिर दलवीर ने बोतल को एक झटके में खोला और पूछा- शालिनी, तुम्हारे लिए भी डाल दूँ क्या?
"हाँ, बस थोड़ी सी डालना !" मैंने कहा और मैं साथ के लिए काजू चिप्स नमकीन आदि लेने रसोई में चली गई।
हम दोनों आमने सामने बैठ कर बातें करते हुए पीने लगे। मैंने अभी तक अपना पहला गिलास खत्म नहीं किया था और दलवीर तीन पैग पी चुका था।
तभी दलवीर ने कहा- शालिनी, तुम इतनी दूर क्यूँ बैठी हुई हो? यहाँ मेरे साथ आ कर बैठ जाओ।
मैं उसके सामने से उठ कर उसके साथ आकर बैठ गई- आज ठण्ड भी बहुत है !
मेरे मुँह से निकला।
उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे अपने साथ खींच कर सटा लिया और बोला- अब ठीक है और अब ठण्ड भी कम लगेगी।
हालाँकि हीटर चलने से कमरा अच्छा गरम था फिर भी मैंने दलवीर से और भी चिपकते हुए कहा- हाँ अब ठीक लग रहा है।
"अगर अभी भी ठण्ड लगे तो और भी तरीका है मेरे पास !" उसने कहा।
"और क्या तरीका अपनाओगे?" मैंने पूछा।
"तुम्हें अपनी गोद में बिठा कर अपने साथ चिपका लूँगा फिर ठण्ड बिल्कुल भी नहीं लगेगी" दलवीर बोला।
"फिर तो मुझे अभी भी ठण्ड लग रही है, अब मुझे अपनी गोद में बिठाओ !" मैंने कहा।
इस पर दलवीर ने मुझे हाथ से पकड़ कर उठाते हुए अपनी गोद में बिठा लिया और जोर से अपने साथ दबा लिया। मैंने अपनी बाहें उसके गले में लपेट दीं और उसके सीने में अपना मुँह छिपा कर उसकी छातियों को चूमने लगी। मैं उत्तेजित होने लगी थी।
कुछ समय बाद दलवीर ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए पूछा- अब ठीक लग रहा है या और गरमी दूँ?
"दलवीर आज अपनी सारी गरमी मुझे दे दो !!" मैंने धीरे से कहा।
"झेल पाओगी मेरी गरमी?" मेरे माथे को चूमते हुए उसने कहा।
"कोशिश करूँगी !" मैंने भी उसके गालों को चूमते हुए कहा।
कुछ देर के बाद उसने मुझे अपने से अलग किया और बाथरूम होकर आया। उसने अपने और मेरे लिए पैग बनाया तो मैंने उसको पूछा कि अगर वो कुछ खाना चाहता हो। इस पर उसने कहा कि जब जरूरत होगी तो वो बता देगा।
तभी उसके मोबाइल पर सुनील का फोन आया उसने कुछ बात की और फोन मुझे दे दिया। सुनील पूछ रहा था कि सब कुछ ठीक है या नहीं। मैंने फोन का स्पीकर चालू कर दिया और कहा कि सब कुछ बढ़िया चल रहा है। इसी समय दलवीर वहाँ से बाहर जाने लगा तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसको रोक लिया। तभी दूसरी ओर से सुनील ने पूछा कि कुछ चुदाई का प्रोग्राम किया या नहीं। मैंने इसे सही समय समझा और दलवीर के लंड पर हाथ फेरते हुए कहा कि अभी तक तो लंड महाराज के दर्शन भी नहीं हुए, प्रसाद तो बाद में मिलेगा।
मुझे उसके चेहरे पर कुछ शर्म सी लग रही थी। फिर मैंने फोन का स्पीकर बंद कर दिया और फोन दलवीर को बात करने के लिए दे दिया। जब दलवीर बात कर रहा था तो मैंने उसका एक हाथ अपने एक मोम्मे पर रख कर दबा दिया। उसने झटके से हाथ हटाया तो मैंने फिर से उसका हाथ पकड़ कर दोबारा अपने मोम्मे पर दबा दिया और अपना दूसरा हाथ उसके लंड पर रगड़ने लगी।
फोन बंद होने पर उसने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और धीरे धीरे मुझे अपने साथ दबाने लगा।
मैंने कहा- अब ज़रा अपने लंड महाराज के भी दर्शन करवा दो।
तब उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपना लंड बाहर निकाल लिया। मैंने देखा उसका लंड कोई पांच इंच लंबा था और बहुत नरम था।
मैंने उसके लंड की चमड़ी ऊपर की और उसको आगे पीछे करने लगी। मुझे चूमते हुए दलवीर ने मेरा स्वेटर उतारना शुरू किया तो मैंने अपना स्वेटर उतार दिया और अब उसका स्वेटर उतारने की कोशिश करने लगी। फिर उसने भी अपना स्वेटर उतार कर अपनी कमीज़ भी उतार दी।
दलवीर ने मेरे होठों को अपने होठों में दबा लिया और मेरे मोम्मे दबाने लगा। एक एक करके हम दोनों के सारे कपड़े उतर गए और हम एक दूसरे के सामने नंगे खड़े थे।
उसने मुझे अपनी चौड़े सीने से लगा लिया तो मैं उसके गले में बाहें डाल कर अपने पंजों के बल ऊपर हो कर उसके होठों को चूमने लगी। तब दलवीर ने मेरे चूतड़ों के नीचे से हाथ डाल कर मुझे अपनी गोद में उठा लिया और मैंने अपनी टांगें उसकी कमर पर लपेट दीं।
"अब बताओ कितनी गरमी दूँ तुम्हें?" दलवीर ने मुझे चूमते हुए पूछा।
"जितनी चाहो दे दो !" मैंने भी उसके गले में अपनी बाँहों का दबाव बढ़ाते हुए कहा।
मुझे वैसे ही उठाये हुए दलवीर सोफे पर बैठ गया और हम दोनों एक दूसरे के होठों को चूसने लगे।
बहुत देर तक ऐसे ही चूमा चाटी करने और एक दूसरे शरीर को सहलाने के बाद मैं उसके ऊपर से हटी और उसके साथ में बैठ गई। दलवीर ने अपना पैग खत्म किया और मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर लगा कर बोला- अब ज़रा इसको भी प्यार से चूम दो !
मैं उसके लंड को सहलाने लगी। मैंने सोचा कि अभी ढीला है तो पाँच इंच का है जब खड़ा होगा तो कितना लंबा होगा? मैंने उसके लंड पर झुक कर उसके सिरे को चूम लिया। फिर उसके सीने को चूमने चाटने लगी। उसके कंधों और बाँहों की मांसपेशियों को चूम चूम कर चाटने लगी। और धीरे धीरे नीचे की ओर आने लगी। उसके लंड को चाटती और काट भी लेती।
दलवीर के मुँह से हल्की हल्की सिसकारियाँ निकल रहीं थीं। मैंने उसके लंड को अपने मुँह में भर लिया। उसके टट्टों को दूसरे हाथ से सहलाती हुई उसके लंड से खेलने लगी। मैंने देखा कि उसका लंड अब खड़ा हो रहा था और उसमें कड़ापन आने लगा था। मैं अपनी जीभ उसके लंड के सिरे पर फिरा रही थी और उसको चूम चाट रही थी, अपने हाथों में अपनी थूक लगा कर उसके लंड पर मलती हुई ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर उसका लंड चाट रही थी। मैं कभी उसके लंड को अपने चेहरे पर मारती अभी अपने मुँह को खोल कर उसके अंदर मारती। उसकी जाँघें चाटते हुए उसके लंड को हिला रही थी।
धीरे धीरे उसका लंड पूरी तरह खड़ा हो गया। उसका लंड बहुत तगड़ा और लंबा था। आज तक मैंने जितने भी लड़कों के लंड लिये हैं उन सबसे लंबा और मोटा लंड था। मैं दलवीर को कहने लगी- दलवीर, तुम्हारा लंड कितना मोटा है ! यह तो मेरे मुँह में पूरा घुसेगा ही नहीं!!
"मुँह में ना सही चूत में तो घुस ही जाएगा !!" मेरे सिर को अपने लंड की ओर दबाते हुए दलवीर ने जवाब दिया, फिर मुझे हटा कर मेरे सामने खड़े होकर अपने चपटे लंड को पकड़ कर उसकी मुठ मारता हुआ दलवीर कहने लगा- शालिनी, मेरा लंड पूरा नौ इंच लंबा है। इसकी चौड़ाई ढाई इंच है मोटाई तीन इंच। तुम चाहो तो नाप सकती हो !!!
मैंने दोनों हाथों से उसके लंड को पकड़ा और चाटने लगी। दलवीर अपना लंड मेरे मुँह में डालना चाहता था। मैंने उसके लंड को अपने मुँह में लिया तो उसने मेरा सिर पकड़ लिया और मेरे मुँह में धक्के मारने लगा। उसका लंड मेरे गले के अंदर तक जा कर मेरा मुँह चोद कर रहा था।कुछ सेकंड तक तो मैंने झेला पर फिर अपने सिर को ना ना की तरह हिलाते हुए गूँ गूँ की आवाजें निकलने लगी तब उसने अपना लंड मेरे मुँह से बाहर निकाला और उसे मेरे मुँह पर मारने लगा। मैं जोर जोर से साँसे ले रही थी। फिर मैंने उसके लंड को थोड़ा सा अपने मुँह में लिया और अपने सिर को जोर जोर से आगे पीछे करते हुए उसके टट्टों को सहलाने लगी। कोई आधे घण्टे तक उसके लंड को चूसने के बाद उसके लंड से मेरे मुँह में वीर्य की पिचकारी निकली जो सीधी हलक से मेरे अंदर उतर गई।
मैंने उसका लंड अपने मुँह बाहर निकाला और जोर जोर से हिला कर उसके वीर्य को अपने मुँह पर गिराने लगी। दलवीर मुझे खड़ा कर के मेरे होठों को चूसने लगा और हम दोनों के मुँह में उसके वीर्य का स्वाद था। अब दलवीर ने मुझे नीचे कालीन पर लिटा लिया और मेरी चूत के ऊपर अपना हाथ रगड़ने लगा। मेरी चूत गीली हो गई थी। फिर उसने मेरी जांघों को चाटना शुरू कर दिया और ऊपर बढ़ते हुए मेरे मुँह तक पहुँच गया। बहुत देर तक मुझे ऐसे ही चूमते चाटते हुए उसने धीरे धीरे अपनी एक उँगली को मेरी चूत में डाल दिया।
"आराम से दलवीर !" मैंने धीरे से कहा।
"हाँ हूँ हूँ !!!" दलवीर ने कहा।
मैंने उसके सिर को अपने हाथों में पकड़ा हुआ था। उसने मेरे होठों को अपने होठों में दबा लिया और अपनी उंगली मेरी चूत के अंदर बाहर करने लगा।
मैं अपने सिर को इधर उधर झटके मार रही थी और जोर जोर से सिसकारियाँ भर रही थी। कुछ ही देर में मैं झड़ गई।
"ओहहह दलवीर ऊपर आ जाओ !!! आ जाओ अपना लंड डाल दो मेरी चूत में !!!" मैंने कहा परंतु उसने अपनी उंगली से मेरी चूत को चोदना जारी रखा।
कुछ समय बाद दलवीर नीचे आ गया और मेरी दोनों जांघों को अपने मज़बूत हाथों से पकड़ कर खोल कर मेरी जांघों और चूत के बिल्कुल आस पास चाटने लगा।
मेरी सिसकारियाँ अब और भी तेज़ हो गईं थी- ओहह आह्ह आहह्ह प्लीज़ छोड़ दो या चोद दो !!! दलवीर प्लीज़ चोद दो मुझे !!! ऊपर आ जाओ !!!
मैं जोर जोर से बोल रही थी। अब उसकी जीभ मेरी चूत के ऊपर चल रही थी। उसने अपने एक हाथ से मेरी चूत की फांके खोल दीं। उसकी जीभ ने जैसे ही मेरी चूत के अंदर के होठों को छुआ मैं फिर से झड़ गई और मेरा पानी दलवीर के मुँह पर आ गया। उसने जल्दी से अपने लंड को मेरे बहते हुए पानी से चिकना करना शुरू कर दिया और अपने लंड का सिरा मेरी चूत पर रगड़ते हुए एक हल्का सा धक्का मारा।
जैसे ही उसके लंड का सिरा मेरी चूत के अंदर घुसा मैं जोर से कराही- दलवीर, प्लीज़ थोड़ा धीरे धीरे अंदर डालना। बहुत मोटा है दर्द होता है।
"तुम जैसे कहोगी मैं वैसे ही चोदूँगा, परन्तु एक बार लंड तो पूरा अंदर डालने दो !" मुझे चूमते हुए दलवीर ने कहा।
कुछ देर तक रुक कर उसने पूछा- अब ठीक है या अभी भी बहुत दर्द हो रहा है?
"नहीं ! अब ठीक है पर धीरे धीरे ही करो !" मैंने कहा। फिर उसने रुक रुक कर धक्के लगाते हुए मेरे मोम्मे दबाते हुए और मेरे होठों को चूसते हुए अपना पूरा लंड मेरी चूत में डाल दिया। मैं बहुत जोर जोर सिसकारियाँ भर रही थी।
"जानती हो शालिनी, मैंने जब तुम्हें पहली बार तुम्हारे ऑफिस में देखा था तो कभी सोचा भी नहीं था कि इस तरह से तुम्हारे घर में आ कर तुम्हें चोदूँगा !" दलवीर कहने लगा।
"इसके लिए तो तुम्हें अपने सुनील सर को धन्यवाद देना चाहिए !" मैंने उसको नीचे से हल्का सा धक्का मार कर चोदने का संकेत देते हुए कहा।
अब दलवीर ने धीरे धीरे अपने लंड को बाहर करना शुरू कर दिया।
"सुनील सर तो सहकर्मी से ज़्यादा मेरे दोस्त हैं। बहुत बार हम दोनों ऑफिस के काम से एक साथ दिल्ली से बाहर जाते हैं और कई बार तो हम दोनों ने एक साथ मज़ा भी किया है।" मुझे चोदते हुए दलवीर कहने लगा।
"क्या मतलब? तुम दोनों ने मिलकर चुदाई की है?" मैंने हैरानी दिखाते हुए पूछा।
"हाँ, बहुत बार हमने एक दूसरे के सामने ही लड़कियों को चोदा है।" दलवीर ने कहा।
"क्या कभी तुम दोनों ने मिल कर एक ही लड़की को भी चोदा है?" मैंने उसके मोटे लंड की अभ्यस्त होते हुए पूछा।
"हाँ पर सिर्फ तीन बार !!" दलवीर बोला।
"क्या कभी ऐसा नहीं हुआ कि तुम्हारा लंड लेने के बाद लड़की ने सुनील को कहा हो कि उसका लंड छोटा है?" मैंने पूछा।
"नहीं पहले सुनील सर चोदते हैं उसके बाद मैं चोदता हूँ क्योंकि उसके बाद लड़की की हालत लंड लेने लायक ही नहीं रहती !" अपनी गति बढ़ाते हुए दलवीर बोला।
"क्यों? पहले तुम क्यों नहीं चोदते? फिर बाद में सुनील चोद ले तो?" मैंने उसे उकसाते हुए कहा।
"ठीक है एक बार तुम हम दोनों को एक साथ बुला लो। तब पहले मैं तुम्हें चोद लूँगा फिर बाद में तुम सुनील सर से चुदवा लेना !" कहते हुए उसने अब जोर जोर से चोदना शुरू कर दिया।
मैं उसके नीचे दबी हुई थी और दलवीर अपने पूरे दम-खम से मेरी चूत की धुनाई कर रहा था, फच्च फच्च की आवाजें आ रहीं थीं। कभी मेरी एक टांग को ऊपर करता कभी दूसरी को तो कभी दोनों को। साथ ही साथ उसने अपनी हथेलियों से मेरे मम्मों को मसल मसल कर उनको लाल कर दिया था, कभी मेरे होठों को काट लेता कभी मेरे उरोजों को काट लेता।
कुछ देर के बाद उसके कहा- शालिनी, मैं झड़ने वाला हूँ।
"अंदर ही झड़ जाओ !" मैंने उसके होठों को चूसते हुए कहा और उसके लंड ने मेरी चूत में गरम वीर्य भर दिया।
मुझे लगा कि अब दलवीर मेरे ऊपर से हट जाएगा और मैं कुछ देर आराम कर सकूँगी परंतु उसका लंड ढीला नहीं पड़ा था। बस एक दो मिनट ही वो रुका और फिर दोबारा मुझे चोदने लगा। एक बार तो मुझे लगा कि आज की पूरी रात मैं उसके नीचे ही दबी रहूँगी। कोई डेढ़ घण्टे से दलवीर मुझे चोद रहा था और इस दौरान जहाँ दलवीर केवल एक ही बार झड़ा था वहीँ मैं छह सात बार झड़ चुकी थी। कमरे में सिर्फ हम दोनों की चूमने चाटने और आनन्द से कराहने की आवाज़ें आ रहीं थीं।
चूँकि मेरी आँखें मुंदी हुईं थीं इसलिए दलवीर ने मुझे पूछा- शालू, तुम्हें नींद आ रही है क्या?"
"नहीं, नींद नहीं मज़ा आ रहा है !!" मैंने अपनी टाँगों का दबाव उसकी पीठ पर बढ़ाते हुए कहा।
दलवीर ने धक्कों की गति बढ़ा दी। कुछ देर और चोदने के बाद उसने अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाला और मेरे ऊपर से उठकर सोफे पर बैठ गया। मैंने देखा उसका लंड किसी धारदार तलवार की तरह मेरे पानी से चमक रहा था। मैं उसके बिल्कुल सामने नीचे कालीन पर अपने घुटनों के बल बैठ गई और उसके लंड को अपने हाथ में पकड़ कर एक बार फिर से उसकी मुठ मारने लगी।
दलवीर ने झुक कर मेरे चेहरे को ऊपर किया और मेरे चेहरे को चाटने लगा। अपने दूसरे हाथ से उसके टट्टे सहलाते हुए मैंने उसकी मुठ मारने की गति बढ़ा दी और जोर जोर से उसका लंड हिलाने लगी।
कुछ समय बाद मैंने उसके टट्टों को अपने मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया और दोनों हाथ से उसका लण्ड हिलाने लगी। मैंने देखा दलवीर का सिर सोफे की पीठ पर टिका था और वो अपनी आँखें मूंद कर मुठ मरवाने का मज़ा ले रहा था। करीब बीस मिनट तक उसके लंड को हिलाने के बाद उसके लंड ने वीर्य का लावा उगल दिया।
जैसे ही उसके लंड से वीर्य की पहली पिचकारी निकली मैंने एकदम से उसके लंड को अपने मोम्मों में दबा लिया और उसके लंड को ऊपर नीचे करने लगी जिससे सारा वीर्य मेरे वक्ष पर गिर गया और फिर मैंने वो सारा वीर्य अपने स्तनों पर मल दिया।
दलवीर ने मुझे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और अपने साथ चिपका लिया। मेरे वीर्य से गीले मोम्मों के कारण उसकी छाती भी अब वीर्य से गीली थी। मैंने महसूस किया कि दलवीर का लंड पूरा ढीला नहीं पड़ा था और उसमें अभी भी कड़ापन था। मैंने सोचा कि सुनील ने ठीक ही कहा था कि जब तक इसका लंड चार पाँच बार झड़े नहीं ढीला नहीं पड़ता।
कुछ देर के बाद मैंने दलवीर को कहा- चलो नहा लो, फिर खाना खाते हैं।
हम दोनों बारी बारी से नहाये और दलवीर ने अपने लिए नया पैग बनाया और रसोई में आकर मेरे पीछे खड़ा हो गया।
मैं खाना गर्म कर रही थी, तभी मैंने महसूस किया कि दलवीर का लंड मेरी कमर से टकरा रहा था। मैंने उसकी तरफ देखे बिना ही कहा- लगता है लंड महाराज अभी शांत नहीं हुए हैं !??!
दलवीर ने अपना गिलास रखा और पीछे से मेरे कंधे पकड़ कर मेरी गर्दन को चूमते हुए बोला- लगता है जब से इसने तुम्हारी चूत का पानी पिया है इसकी प्यास और बढ़ गई है।
"पहले खाना खा लो, फिर इसकी प्यास भी बुझा लेना !!" मैंने हाथ पीछे करके उसके लंड को दबाते हुए कहा।
दलवीर ने मेरा हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपना अंडरवियर नीचे करके अपना लंड बाहर निकाल कर मेरे हाथ में पकड़ा कर बोला- पहले इसकी प्यास तो बुझा दो फिर खाना भी खा लेंगे।
मैंने तुरन्त गैस बंद की और थोड़ा सा पीछे हट कर झुक कर घोड़ी बन कर बोली- लो बुझा लो इसकी प्यास।
दलवीर ने आव देखा ना ताव, तुरंत पीछे से मेरी नाईटी कमर तक ऊपर की और अपने लंड को मेरी गांड के छेद पर रगड़ने लगा।
"नहीं प्लीज़ गांड नहीं !! तुम्हारा लंड बहुत मोटा है। मैं झेल नहीं पाऊँगी !!" मैंने उसके लंड को पकड़ कर गांड से हटाते हुए कहा।
"बस एक बार ही डालूँगा फिर जैसे ही तुम कहोगी बाहर निकाल लूँगा !" उसने मेरा हाथ हटाते हुए फिर से अपना लंड मेरी गांड के छेद पर रख कर थोड़ा सा जोर लगाते हुए कहा।
"क्या तुम चाहते हो कि मैं दर्द के मारे छटपटाती रहूँ और दोबारा तुम्हारे साथ सैक्स करने से तौबा कर लूँ?" मैंने पूछा।
"नहीं, मेरा ऐसा कोई मतलब नहीं था। मैं सिर्फ तुम्हारी गांड मारने का मज़ा लेना चाहता हूँ।" कहते हुए दलवीर ने अपना लंड मेरी गांड के छेद से हटा लिया और अब उसे मेरी गांड की दरार में मारने लगा।
फिर दलवीर बाथरूम से अपने लंड पर तेल लगा कर आया और मेरी टांगों को हल्के से चौड़ी कर के मेरी चूत पर घिसने लगा। मैंने उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर लगाया तो उसने हल्का सा धक्का मारा और उसके लंड का सिरा अंदर घुस गया। "आह्ह्ह!!!!! ओह्ह्ह!!!!!" मेरे मुँह से आनन्द भरी कराह निकली।
दलवीर ने मेरी कमर पकड़ कर एक जोरदार धक्का और मारा और उसका पूरा लंड मेरी चूत की गहराई में समा गया। दलवीर कुछ सेकंड के लिए रुका और फिर दनादन मुझे चोदने लगा।
मैंने रसोई की शेल्फ पर अपने हाथ जमाये हुए थे और उसके जोरदार धक्कों को झेल रही थी।
"दलवीर, यहाँ पर खिड़की से ठंडी हवा आ रही है अगर हम अंदर बैठक में चलते तो ज़्यादा अच्छा होता !" मैंने उसे कहा।
दलवीर रुका और कहने लगा- ठीक है चलते हैं परंतु मैं घोड़ी की सवारी करते हुए ही अंदर चलूँगा।
और मैं उसका लंड अपनी चूत में लिए लिए ही धीरे धीरे चलने लगी और वो पीछे से मेरी कमर पकड़ कर साथ में चलने लगा। हम दोनों बैठक में आ गए और मैं सोफे का सहारा लेकर खड़ी हो गई और दलवीर से चुदने लगी।
फिर उसने मेरी नाईटी और ऊपर करके मुझे उसे उतारने को कहा। अब दलवीर मेरे ऊपर झुक गया और मेरी गर्दन और पीठ को चूमने चाटने लगा। मेरे शरीर में झुरझुरी सी उठी और मैं झड़ गई।
दलवीर ने पूछा- क्या हुआ शालू? झड़ गईं क्या?
मैंने सिर्फ हाँ में अपना सिर हिलाया।
"आज तो तुम्हें भी मज़ा आ गया होगा !!" दलवीर मेरी गांड को सहलाते हुए कहने लगा, फिर मेरी पीठ को ऊपर से नीचे तक चाटते हुए बोला- शालू, आज तो हम दोनों सुनील सर के कारण एक साथ हैं। परंतु क्या तुम दोबारा कभी मुझे सैक्स के लिए बुलाओगी?
"बाद में बताऊँगी ! पहले आज का कोटा तो पूरा करो !!" मैंने कहा।
थोड़ी देर के बाद दलवीर ने अपना एक हाथ मेरी चूत के नीचे लगाया और मैं चिंहुक उठी और मैंने उसका हाथ हटाना चाहा। इस पर उसने मेरे हाथ को पकड़ कर मेरी पीठ पर बांध कर अपने दूसरे हाथ से दबा लिया और दोबारा से पहले हाथ को मेरी चूत के नीचे ले जाकर मेरी चूत को सहलाने लगा।
"ओहह आह्ह आह्ह्ह !! प्लीज़ दलवीर मत करो !!!! प्लीज़ अपना हाथ नीचे से हटा लो !!!!!" मैं जोर जोर से हांफते हुए कहने लगी। परंतु उसने मेरी बात पर कोई ध्यान ना दिया और मेरी चूत को सहलाते हुए गहरे धक्के मारने लगा जिससे मैं एक बार दोबारा झड़ गई। मेरा पानी मेरी चूत से बाहर निकल कर मेरी टाँगों पर बह रहा था। फिर से दो बार झड़ने के कारण मेरी टाँगें कांपने लगीं और मैंने उसे कहा- दलवीर, मेरी टांगों में बहुत दर्द हो रहा है। इसलिए प्लीज़ तुम ऊपर आकर चोद लो।
"बस कुछ देर और सहन कर लो शालू, मैं भी झड़ने वाला हूँ।" दलवीर ने चोदने की गति बढ़ाते हुए कहा।
कुछ ही मिनटों के बाद उसने मेरी कमर को बहुत जोर से अपनी ओर दबा लिया और मेरी चूत के अंदर ही झड़ने लगा। जब उसने अपना ढीला होता हुआ लंड बाहर निकाला तो उसके साथ ही उसका वीर्य भी मेरी चूत से बाहर बहने लगा।
जब उसकी सांस संयत हुई तो मैंने पूछा- क्या अब लंड महाराज की भूख-प्यास मिटी या अभी कुछ और चाहिए?
"अगर तुम कुछ और खिलाना पिलाना चाहो तो मैं फिर से लंड महाराज को जगा देता हूँ।" दलवीर हँसते हुए कहने लगा।
"नहीं ! अभी इनको सोने दो और चलो तब तक हम दोनों भी खाना खा लें !" मैंने भी हँसते हुए जवाब दिया।
फिर दलवीर ने खाना लगाने में मेरी मदद की और हम दोनों खाना खाकर एक दूसरे से चिपक कर सो गए। सुबह दलवीर उठ कर तैयार हुआ और नाश्ता करके अपने घर चला गया और मैं अपने घर को ठीक ठाक करने में लग गई।
उसने कहा कि वो आ तो सकता है परन्तु जल्दी ही चला जाएगा क्योंकि उसे भी अपने परिवार के साथ कहीं जाना था।
थोड़ी देर के बाद सुनील ने मुझे फोन किया और कहा कि एक लड़का है अगर मैं चाहूँ तो वो परिचय करवा सकता है। मेरे पूछने पर उसने बताया कि वो लड़का उसके साथ ही काम करता है और मैंने उसे देखा भी हुआ है। चूँकि मैं वैसे भी अकेली थी इसलिए मैंने हामी भर दी।
शाम को कोई 05.00 बजे सुनील एक लड़के के साथ मेरे घर आया। मैंने उस लड़के को पहचान लिया, वह सुनील के साथ ही काम करता था और एक बार सुनील के साथ मेरे ऑफिस में भी आया था।
सुनील ने दलवीर से मेरा परिचय करवाया। दलवीर एक ऊँची कद काठी का लड़का था, 5'11" कद फूली हुई छाती और चौड़े कंधे।
मैं सोचने लगी कि कहीं ऐसा ना हो कि लंड के मामले में दलवीर फिसड्डी हो। फिर सोचने लगी कि एक बार तो चोद ही लेगा परंतु मैं नहीं जानती थी कि नव वर्ष की यह पूर्व संध्या मुझे हमेशा याद रहने वाली थी।
बातों बातों में सुनील ने दलवीर से कहा कि जल्दी में वो जूस भूल गया है तो दलवीर जूस लेने चला गया। मैं रसोई में गई तो सुनील भी पीछे पीछे आ गया और कहने लगा- शालिनी, तुम जैसा चाहो दलवीर के साथ वैसा ही मज़ा कर सकती हो। मैं सिर्फ एक बात बताना चाहूँगा कि दलवीर का लंड जल्दी से खड़ा नहीं होता परंतु एक बार खड़ा हो जाए तो जब तक तीन चार बार झड़ ना जाए तब तक इसका लंड ठण्डा भी नहीं होता। मैं तो कई बार टूअर पर देख चुका हूँ, आखिर में लड़की ही इसको हाथ जोड़ कर कहती है कि छोड़ दो अब तो शरीर में जान नहीं रही ! इसलिए अगर तुम चाहो तो मैं अभी भी उसको साथ में वापिस ले जा सकता हूँ।
मैंने कहा- नहीं ! दलवीर को यहीं रहने दो और अगर कुछ लगा तो मैं तुम्हें फोन कर दूँगी।
तभी दलवीर वापिस आ गया और सुनील ने उसको कहा- यार दलवीर, फटाफट दो पैग पिला दे, मैंने जाना है। तुम दोनों आपस में मज़ा करते रहना।
मैंने दलवीर को गिलास दिए तो उसने अपने और सुनील के लिए वोदका के पैग बनाये और मेरी ओर देखने लगा।
मैंने कहा- नहीं, अभी आप दोनों लो, सुनील के जाने के बाद देखेंगे।
कुछ ही देर में सुनील चला गया।
तब दलवीर ने मुझसे पूछा- कहीं चलने का प्रोग्राम है या घर पर ही रहना है?
इस पर मैंने कहा- चलो बाज़ार से कुछ सामान ले कर आते हैं।
फिर मैं उसके साथ उसकी मोटरसाइकिल पर चल पड़ी। बाहर बहुत ही ठिठुरन वाली ठण्ड थी। मैंने अपने दोनों हाथ उसकी कमर पर लपेट लिए और उससे चिपक कर बैठ गई। हम दोनों एक सार्वजनिक मनोरंजन स्थल पर चले गए। वहाँ बहुत सारे लड़के लड़कियाँ मस्ती के मूड में घूम रहे थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
हमने पिज्ज़ा आदि खाया और फिर कुछ खाने का सामान खरीद कर घर आ गए। आते ही मैंने जल्दी से हीटर चला दिया ताकि ठण्ड से कुछ आराम मिले। दलवीर ने अपनी जैकेट उतार कर रखी और बाथरूम में घुस गया। मैंने जल्दी से मेज़ साफ़ करके नए गिलास इत्यादि रख दिए और वोदका की बोतल उठा कर रसोई में रख दी। दलवीर ने बाहर आकर इधर उधर बोतल के लिए देखा तो मैंने उसे एक आयातित वोदका की बोतल देकर कहा कि हम दोनों अपने नव वर्ष की पूर्व संध्या का मज़ा इसके साथ करेंगे।
दलवीर बोतल को बड़े ध्यान से देखता हुआ कुछ पढ़ रहा था कि मैंने उसके साथ बैठ कर उसकी बाँह पकड़ कर हँसते हुए पूछा- क्या देख रहे हो कि सील कैसे तोड़नी है?
इस पर दलवीर बोला- सील तो बहुत तोड़ीं हैं और अभी भी तोड़ सकता हूँ। फिलहाल तो देख रहा हूँ कि यह कहाँ की बनी हुई है?
फिर दलवीर ने बोतल को एक झटके में खोला और पूछा- शालिनी, तुम्हारे लिए भी डाल दूँ क्या?
"हाँ, बस थोड़ी सी डालना !" मैंने कहा और मैं साथ के लिए काजू चिप्स नमकीन आदि लेने रसोई में चली गई।
हम दोनों आमने सामने बैठ कर बातें करते हुए पीने लगे। मैंने अभी तक अपना पहला गिलास खत्म नहीं किया था और दलवीर तीन पैग पी चुका था।
तभी दलवीर ने कहा- शालिनी, तुम इतनी दूर क्यूँ बैठी हुई हो? यहाँ मेरे साथ आ कर बैठ जाओ।
मैं उसके सामने से उठ कर उसके साथ आकर बैठ गई- आज ठण्ड भी बहुत है !
मेरे मुँह से निकला।
उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे अपने साथ खींच कर सटा लिया और बोला- अब ठीक है और अब ठण्ड भी कम लगेगी।
हालाँकि हीटर चलने से कमरा अच्छा गरम था फिर भी मैंने दलवीर से और भी चिपकते हुए कहा- हाँ अब ठीक लग रहा है।
"अगर अभी भी ठण्ड लगे तो और भी तरीका है मेरे पास !" उसने कहा।
"और क्या तरीका अपनाओगे?" मैंने पूछा।
"तुम्हें अपनी गोद में बिठा कर अपने साथ चिपका लूँगा फिर ठण्ड बिल्कुल भी नहीं लगेगी" दलवीर बोला।
"फिर तो मुझे अभी भी ठण्ड लग रही है, अब मुझे अपनी गोद में बिठाओ !" मैंने कहा।
इस पर दलवीर ने मुझे हाथ से पकड़ कर उठाते हुए अपनी गोद में बिठा लिया और जोर से अपने साथ दबा लिया। मैंने अपनी बाहें उसके गले में लपेट दीं और उसके सीने में अपना मुँह छिपा कर उसकी छातियों को चूमने लगी। मैं उत्तेजित होने लगी थी।
कुछ समय बाद दलवीर ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए पूछा- अब ठीक लग रहा है या और गरमी दूँ?
"दलवीर आज अपनी सारी गरमी मुझे दे दो !!" मैंने धीरे से कहा।
"झेल पाओगी मेरी गरमी?" मेरे माथे को चूमते हुए उसने कहा।
"कोशिश करूँगी !" मैंने भी उसके गालों को चूमते हुए कहा।
कुछ देर के बाद उसने मुझे अपने से अलग किया और बाथरूम होकर आया। उसने अपने और मेरे लिए पैग बनाया तो मैंने उसको पूछा कि अगर वो कुछ खाना चाहता हो। इस पर उसने कहा कि जब जरूरत होगी तो वो बता देगा।
तभी उसके मोबाइल पर सुनील का फोन आया उसने कुछ बात की और फोन मुझे दे दिया। सुनील पूछ रहा था कि सब कुछ ठीक है या नहीं। मैंने फोन का स्पीकर चालू कर दिया और कहा कि सब कुछ बढ़िया चल रहा है। इसी समय दलवीर वहाँ से बाहर जाने लगा तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसको रोक लिया। तभी दूसरी ओर से सुनील ने पूछा कि कुछ चुदाई का प्रोग्राम किया या नहीं। मैंने इसे सही समय समझा और दलवीर के लंड पर हाथ फेरते हुए कहा कि अभी तक तो लंड महाराज के दर्शन भी नहीं हुए, प्रसाद तो बाद में मिलेगा।
मुझे उसके चेहरे पर कुछ शर्म सी लग रही थी। फिर मैंने फोन का स्पीकर बंद कर दिया और फोन दलवीर को बात करने के लिए दे दिया। जब दलवीर बात कर रहा था तो मैंने उसका एक हाथ अपने एक मोम्मे पर रख कर दबा दिया। उसने झटके से हाथ हटाया तो मैंने फिर से उसका हाथ पकड़ कर दोबारा अपने मोम्मे पर दबा दिया और अपना दूसरा हाथ उसके लंड पर रगड़ने लगी।
फोन बंद होने पर उसने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और धीरे धीरे मुझे अपने साथ दबाने लगा।
मैंने कहा- अब ज़रा अपने लंड महाराज के भी दर्शन करवा दो।
तब उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपना लंड बाहर निकाल लिया। मैंने देखा उसका लंड कोई पांच इंच लंबा था और बहुत नरम था।
मैंने उसके लंड की चमड़ी ऊपर की और उसको आगे पीछे करने लगी। मुझे चूमते हुए दलवीर ने मेरा स्वेटर उतारना शुरू किया तो मैंने अपना स्वेटर उतार दिया और अब उसका स्वेटर उतारने की कोशिश करने लगी। फिर उसने भी अपना स्वेटर उतार कर अपनी कमीज़ भी उतार दी।
दलवीर ने मेरे होठों को अपने होठों में दबा लिया और मेरे मोम्मे दबाने लगा। एक एक करके हम दोनों के सारे कपड़े उतर गए और हम एक दूसरे के सामने नंगे खड़े थे।
उसने मुझे अपनी चौड़े सीने से लगा लिया तो मैं उसके गले में बाहें डाल कर अपने पंजों के बल ऊपर हो कर उसके होठों को चूमने लगी। तब दलवीर ने मेरे चूतड़ों के नीचे से हाथ डाल कर मुझे अपनी गोद में उठा लिया और मैंने अपनी टांगें उसकी कमर पर लपेट दीं।
"अब बताओ कितनी गरमी दूँ तुम्हें?" दलवीर ने मुझे चूमते हुए पूछा।
"जितनी चाहो दे दो !" मैंने भी उसके गले में अपनी बाँहों का दबाव बढ़ाते हुए कहा।
मुझे वैसे ही उठाये हुए दलवीर सोफे पर बैठ गया और हम दोनों एक दूसरे के होठों को चूसने लगे।
बहुत देर तक ऐसे ही चूमा चाटी करने और एक दूसरे शरीर को सहलाने के बाद मैं उसके ऊपर से हटी और उसके साथ में बैठ गई। दलवीर ने अपना पैग खत्म किया और मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर लगा कर बोला- अब ज़रा इसको भी प्यार से चूम दो !
मैं उसके लंड को सहलाने लगी। मैंने सोचा कि अभी ढीला है तो पाँच इंच का है जब खड़ा होगा तो कितना लंबा होगा? मैंने उसके लंड पर झुक कर उसके सिरे को चूम लिया। फिर उसके सीने को चूमने चाटने लगी। उसके कंधों और बाँहों की मांसपेशियों को चूम चूम कर चाटने लगी। और धीरे धीरे नीचे की ओर आने लगी। उसके लंड को चाटती और काट भी लेती।
दलवीर के मुँह से हल्की हल्की सिसकारियाँ निकल रहीं थीं। मैंने उसके लंड को अपने मुँह में भर लिया। उसके टट्टों को दूसरे हाथ से सहलाती हुई उसके लंड से खेलने लगी। मैंने देखा कि उसका लंड अब खड़ा हो रहा था और उसमें कड़ापन आने लगा था। मैं अपनी जीभ उसके लंड के सिरे पर फिरा रही थी और उसको चूम चाट रही थी, अपने हाथों में अपनी थूक लगा कर उसके लंड पर मलती हुई ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर उसका लंड चाट रही थी। मैं कभी उसके लंड को अपने चेहरे पर मारती अभी अपने मुँह को खोल कर उसके अंदर मारती। उसकी जाँघें चाटते हुए उसके लंड को हिला रही थी।
धीरे धीरे उसका लंड पूरी तरह खड़ा हो गया। उसका लंड बहुत तगड़ा और लंबा था। आज तक मैंने जितने भी लड़कों के लंड लिये हैं उन सबसे लंबा और मोटा लंड था। मैं दलवीर को कहने लगी- दलवीर, तुम्हारा लंड कितना मोटा है ! यह तो मेरे मुँह में पूरा घुसेगा ही नहीं!!
"मुँह में ना सही चूत में तो घुस ही जाएगा !!" मेरे सिर को अपने लंड की ओर दबाते हुए दलवीर ने जवाब दिया, फिर मुझे हटा कर मेरे सामने खड़े होकर अपने चपटे लंड को पकड़ कर उसकी मुठ मारता हुआ दलवीर कहने लगा- शालिनी, मेरा लंड पूरा नौ इंच लंबा है। इसकी चौड़ाई ढाई इंच है मोटाई तीन इंच। तुम चाहो तो नाप सकती हो !!!
मैंने दोनों हाथों से उसके लंड को पकड़ा और चाटने लगी। दलवीर अपना लंड मेरे मुँह में डालना चाहता था। मैंने उसके लंड को अपने मुँह में लिया तो उसने मेरा सिर पकड़ लिया और मेरे मुँह में धक्के मारने लगा। उसका लंड मेरे गले के अंदर तक जा कर मेरा मुँह चोद कर रहा था।कुछ सेकंड तक तो मैंने झेला पर फिर अपने सिर को ना ना की तरह हिलाते हुए गूँ गूँ की आवाजें निकलने लगी तब उसने अपना लंड मेरे मुँह से बाहर निकाला और उसे मेरे मुँह पर मारने लगा। मैं जोर जोर से साँसे ले रही थी। फिर मैंने उसके लंड को थोड़ा सा अपने मुँह में लिया और अपने सिर को जोर जोर से आगे पीछे करते हुए उसके टट्टों को सहलाने लगी। कोई आधे घण्टे तक उसके लंड को चूसने के बाद उसके लंड से मेरे मुँह में वीर्य की पिचकारी निकली जो सीधी हलक से मेरे अंदर उतर गई।
मैंने उसका लंड अपने मुँह बाहर निकाला और जोर जोर से हिला कर उसके वीर्य को अपने मुँह पर गिराने लगी। दलवीर मुझे खड़ा कर के मेरे होठों को चूसने लगा और हम दोनों के मुँह में उसके वीर्य का स्वाद था। अब दलवीर ने मुझे नीचे कालीन पर लिटा लिया और मेरी चूत के ऊपर अपना हाथ रगड़ने लगा। मेरी चूत गीली हो गई थी। फिर उसने मेरी जांघों को चाटना शुरू कर दिया और ऊपर बढ़ते हुए मेरे मुँह तक पहुँच गया। बहुत देर तक मुझे ऐसे ही चूमते चाटते हुए उसने धीरे धीरे अपनी एक उँगली को मेरी चूत में डाल दिया।
"आराम से दलवीर !" मैंने धीरे से कहा।
"हाँ हूँ हूँ !!!" दलवीर ने कहा।
मैंने उसके सिर को अपने हाथों में पकड़ा हुआ था। उसने मेरे होठों को अपने होठों में दबा लिया और अपनी उंगली मेरी चूत के अंदर बाहर करने लगा।
मैं अपने सिर को इधर उधर झटके मार रही थी और जोर जोर से सिसकारियाँ भर रही थी। कुछ ही देर में मैं झड़ गई।
"ओहहह दलवीर ऊपर आ जाओ !!! आ जाओ अपना लंड डाल दो मेरी चूत में !!!" मैंने कहा परंतु उसने अपनी उंगली से मेरी चूत को चोदना जारी रखा।
कुछ समय बाद दलवीर नीचे आ गया और मेरी दोनों जांघों को अपने मज़बूत हाथों से पकड़ कर खोल कर मेरी जांघों और चूत के बिल्कुल आस पास चाटने लगा।
मेरी सिसकारियाँ अब और भी तेज़ हो गईं थी- ओहह आह्ह आहह्ह प्लीज़ छोड़ दो या चोद दो !!! दलवीर प्लीज़ चोद दो मुझे !!! ऊपर आ जाओ !!!
मैं जोर जोर से बोल रही थी। अब उसकी जीभ मेरी चूत के ऊपर चल रही थी। उसने अपने एक हाथ से मेरी चूत की फांके खोल दीं। उसकी जीभ ने जैसे ही मेरी चूत के अंदर के होठों को छुआ मैं फिर से झड़ गई और मेरा पानी दलवीर के मुँह पर आ गया। उसने जल्दी से अपने लंड को मेरे बहते हुए पानी से चिकना करना शुरू कर दिया और अपने लंड का सिरा मेरी चूत पर रगड़ते हुए एक हल्का सा धक्का मारा।
जैसे ही उसके लंड का सिरा मेरी चूत के अंदर घुसा मैं जोर से कराही- दलवीर, प्लीज़ थोड़ा धीरे धीरे अंदर डालना। बहुत मोटा है दर्द होता है।
"तुम जैसे कहोगी मैं वैसे ही चोदूँगा, परन्तु एक बार लंड तो पूरा अंदर डालने दो !" मुझे चूमते हुए दलवीर ने कहा।
कुछ देर तक रुक कर उसने पूछा- अब ठीक है या अभी भी बहुत दर्द हो रहा है?
"नहीं ! अब ठीक है पर धीरे धीरे ही करो !" मैंने कहा। फिर उसने रुक रुक कर धक्के लगाते हुए मेरे मोम्मे दबाते हुए और मेरे होठों को चूसते हुए अपना पूरा लंड मेरी चूत में डाल दिया। मैं बहुत जोर जोर सिसकारियाँ भर रही थी।
"जानती हो शालिनी, मैंने जब तुम्हें पहली बार तुम्हारे ऑफिस में देखा था तो कभी सोचा भी नहीं था कि इस तरह से तुम्हारे घर में आ कर तुम्हें चोदूँगा !" दलवीर कहने लगा।
"इसके लिए तो तुम्हें अपने सुनील सर को धन्यवाद देना चाहिए !" मैंने उसको नीचे से हल्का सा धक्का मार कर चोदने का संकेत देते हुए कहा।
अब दलवीर ने धीरे धीरे अपने लंड को बाहर करना शुरू कर दिया।
"सुनील सर तो सहकर्मी से ज़्यादा मेरे दोस्त हैं। बहुत बार हम दोनों ऑफिस के काम से एक साथ दिल्ली से बाहर जाते हैं और कई बार तो हम दोनों ने एक साथ मज़ा भी किया है।" मुझे चोदते हुए दलवीर कहने लगा।
"क्या मतलब? तुम दोनों ने मिलकर चुदाई की है?" मैंने हैरानी दिखाते हुए पूछा।
"हाँ, बहुत बार हमने एक दूसरे के सामने ही लड़कियों को चोदा है।" दलवीर ने कहा।
"क्या कभी तुम दोनों ने मिल कर एक ही लड़की को भी चोदा है?" मैंने उसके मोटे लंड की अभ्यस्त होते हुए पूछा।
"हाँ पर सिर्फ तीन बार !!" दलवीर बोला।
"क्या कभी ऐसा नहीं हुआ कि तुम्हारा लंड लेने के बाद लड़की ने सुनील को कहा हो कि उसका लंड छोटा है?" मैंने पूछा।
"नहीं पहले सुनील सर चोदते हैं उसके बाद मैं चोदता हूँ क्योंकि उसके बाद लड़की की हालत लंड लेने लायक ही नहीं रहती !" अपनी गति बढ़ाते हुए दलवीर बोला।
"क्यों? पहले तुम क्यों नहीं चोदते? फिर बाद में सुनील चोद ले तो?" मैंने उसे उकसाते हुए कहा।
"ठीक है एक बार तुम हम दोनों को एक साथ बुला लो। तब पहले मैं तुम्हें चोद लूँगा फिर बाद में तुम सुनील सर से चुदवा लेना !" कहते हुए उसने अब जोर जोर से चोदना शुरू कर दिया।
मैं उसके नीचे दबी हुई थी और दलवीर अपने पूरे दम-खम से मेरी चूत की धुनाई कर रहा था, फच्च फच्च की आवाजें आ रहीं थीं। कभी मेरी एक टांग को ऊपर करता कभी दूसरी को तो कभी दोनों को। साथ ही साथ उसने अपनी हथेलियों से मेरे मम्मों को मसल मसल कर उनको लाल कर दिया था, कभी मेरे होठों को काट लेता कभी मेरे उरोजों को काट लेता।
कुछ देर के बाद उसके कहा- शालिनी, मैं झड़ने वाला हूँ।
"अंदर ही झड़ जाओ !" मैंने उसके होठों को चूसते हुए कहा और उसके लंड ने मेरी चूत में गरम वीर्य भर दिया।
मुझे लगा कि अब दलवीर मेरे ऊपर से हट जाएगा और मैं कुछ देर आराम कर सकूँगी परंतु उसका लंड ढीला नहीं पड़ा था। बस एक दो मिनट ही वो रुका और फिर दोबारा मुझे चोदने लगा। एक बार तो मुझे लगा कि आज की पूरी रात मैं उसके नीचे ही दबी रहूँगी। कोई डेढ़ घण्टे से दलवीर मुझे चोद रहा था और इस दौरान जहाँ दलवीर केवल एक ही बार झड़ा था वहीँ मैं छह सात बार झड़ चुकी थी। कमरे में सिर्फ हम दोनों की चूमने चाटने और आनन्द से कराहने की आवाज़ें आ रहीं थीं।
चूँकि मेरी आँखें मुंदी हुईं थीं इसलिए दलवीर ने मुझे पूछा- शालू, तुम्हें नींद आ रही है क्या?"
"नहीं, नींद नहीं मज़ा आ रहा है !!" मैंने अपनी टाँगों का दबाव उसकी पीठ पर बढ़ाते हुए कहा।
दलवीर ने धक्कों की गति बढ़ा दी। कुछ देर और चोदने के बाद उसने अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाला और मेरे ऊपर से उठकर सोफे पर बैठ गया। मैंने देखा उसका लंड किसी धारदार तलवार की तरह मेरे पानी से चमक रहा था। मैं उसके बिल्कुल सामने नीचे कालीन पर अपने घुटनों के बल बैठ गई और उसके लंड को अपने हाथ में पकड़ कर एक बार फिर से उसकी मुठ मारने लगी।
दलवीर ने झुक कर मेरे चेहरे को ऊपर किया और मेरे चेहरे को चाटने लगा। अपने दूसरे हाथ से उसके टट्टे सहलाते हुए मैंने उसकी मुठ मारने की गति बढ़ा दी और जोर जोर से उसका लंड हिलाने लगी।
कुछ समय बाद मैंने उसके टट्टों को अपने मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया और दोनों हाथ से उसका लण्ड हिलाने लगी। मैंने देखा दलवीर का सिर सोफे की पीठ पर टिका था और वो अपनी आँखें मूंद कर मुठ मरवाने का मज़ा ले रहा था। करीब बीस मिनट तक उसके लंड को हिलाने के बाद उसके लंड ने वीर्य का लावा उगल दिया।
जैसे ही उसके लंड से वीर्य की पहली पिचकारी निकली मैंने एकदम से उसके लंड को अपने मोम्मों में दबा लिया और उसके लंड को ऊपर नीचे करने लगी जिससे सारा वीर्य मेरे वक्ष पर गिर गया और फिर मैंने वो सारा वीर्य अपने स्तनों पर मल दिया।
दलवीर ने मुझे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और अपने साथ चिपका लिया। मेरे वीर्य से गीले मोम्मों के कारण उसकी छाती भी अब वीर्य से गीली थी। मैंने महसूस किया कि दलवीर का लंड पूरा ढीला नहीं पड़ा था और उसमें अभी भी कड़ापन था। मैंने सोचा कि सुनील ने ठीक ही कहा था कि जब तक इसका लंड चार पाँच बार झड़े नहीं ढीला नहीं पड़ता।
कुछ देर के बाद मैंने दलवीर को कहा- चलो नहा लो, फिर खाना खाते हैं।
हम दोनों बारी बारी से नहाये और दलवीर ने अपने लिए नया पैग बनाया और रसोई में आकर मेरे पीछे खड़ा हो गया।
मैं खाना गर्म कर रही थी, तभी मैंने महसूस किया कि दलवीर का लंड मेरी कमर से टकरा रहा था। मैंने उसकी तरफ देखे बिना ही कहा- लगता है लंड महाराज अभी शांत नहीं हुए हैं !??!
दलवीर ने अपना गिलास रखा और पीछे से मेरे कंधे पकड़ कर मेरी गर्दन को चूमते हुए बोला- लगता है जब से इसने तुम्हारी चूत का पानी पिया है इसकी प्यास और बढ़ गई है।
"पहले खाना खा लो, फिर इसकी प्यास भी बुझा लेना !!" मैंने हाथ पीछे करके उसके लंड को दबाते हुए कहा।
दलवीर ने मेरा हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपना अंडरवियर नीचे करके अपना लंड बाहर निकाल कर मेरे हाथ में पकड़ा कर बोला- पहले इसकी प्यास तो बुझा दो फिर खाना भी खा लेंगे।
मैंने तुरन्त गैस बंद की और थोड़ा सा पीछे हट कर झुक कर घोड़ी बन कर बोली- लो बुझा लो इसकी प्यास।
दलवीर ने आव देखा ना ताव, तुरंत पीछे से मेरी नाईटी कमर तक ऊपर की और अपने लंड को मेरी गांड के छेद पर रगड़ने लगा।
"नहीं प्लीज़ गांड नहीं !! तुम्हारा लंड बहुत मोटा है। मैं झेल नहीं पाऊँगी !!" मैंने उसके लंड को पकड़ कर गांड से हटाते हुए कहा।
"बस एक बार ही डालूँगा फिर जैसे ही तुम कहोगी बाहर निकाल लूँगा !" उसने मेरा हाथ हटाते हुए फिर से अपना लंड मेरी गांड के छेद पर रख कर थोड़ा सा जोर लगाते हुए कहा।
"क्या तुम चाहते हो कि मैं दर्द के मारे छटपटाती रहूँ और दोबारा तुम्हारे साथ सैक्स करने से तौबा कर लूँ?" मैंने पूछा।
"नहीं, मेरा ऐसा कोई मतलब नहीं था। मैं सिर्फ तुम्हारी गांड मारने का मज़ा लेना चाहता हूँ।" कहते हुए दलवीर ने अपना लंड मेरी गांड के छेद से हटा लिया और अब उसे मेरी गांड की दरार में मारने लगा।
फिर दलवीर बाथरूम से अपने लंड पर तेल लगा कर आया और मेरी टांगों को हल्के से चौड़ी कर के मेरी चूत पर घिसने लगा। मैंने उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर लगाया तो उसने हल्का सा धक्का मारा और उसके लंड का सिरा अंदर घुस गया। "आह्ह्ह!!!!! ओह्ह्ह!!!!!" मेरे मुँह से आनन्द भरी कराह निकली।
दलवीर ने मेरी कमर पकड़ कर एक जोरदार धक्का और मारा और उसका पूरा लंड मेरी चूत की गहराई में समा गया। दलवीर कुछ सेकंड के लिए रुका और फिर दनादन मुझे चोदने लगा।
मैंने रसोई की शेल्फ पर अपने हाथ जमाये हुए थे और उसके जोरदार धक्कों को झेल रही थी।
"दलवीर, यहाँ पर खिड़की से ठंडी हवा आ रही है अगर हम अंदर बैठक में चलते तो ज़्यादा अच्छा होता !" मैंने उसे कहा।
दलवीर रुका और कहने लगा- ठीक है चलते हैं परंतु मैं घोड़ी की सवारी करते हुए ही अंदर चलूँगा।
और मैं उसका लंड अपनी चूत में लिए लिए ही धीरे धीरे चलने लगी और वो पीछे से मेरी कमर पकड़ कर साथ में चलने लगा। हम दोनों बैठक में आ गए और मैं सोफे का सहारा लेकर खड़ी हो गई और दलवीर से चुदने लगी।
फिर उसने मेरी नाईटी और ऊपर करके मुझे उसे उतारने को कहा। अब दलवीर मेरे ऊपर झुक गया और मेरी गर्दन और पीठ को चूमने चाटने लगा। मेरे शरीर में झुरझुरी सी उठी और मैं झड़ गई।
दलवीर ने पूछा- क्या हुआ शालू? झड़ गईं क्या?
मैंने सिर्फ हाँ में अपना सिर हिलाया।
"आज तो तुम्हें भी मज़ा आ गया होगा !!" दलवीर मेरी गांड को सहलाते हुए कहने लगा, फिर मेरी पीठ को ऊपर से नीचे तक चाटते हुए बोला- शालू, आज तो हम दोनों सुनील सर के कारण एक साथ हैं। परंतु क्या तुम दोबारा कभी मुझे सैक्स के लिए बुलाओगी?
"बाद में बताऊँगी ! पहले आज का कोटा तो पूरा करो !!" मैंने कहा।
थोड़ी देर के बाद दलवीर ने अपना एक हाथ मेरी चूत के नीचे लगाया और मैं चिंहुक उठी और मैंने उसका हाथ हटाना चाहा। इस पर उसने मेरे हाथ को पकड़ कर मेरी पीठ पर बांध कर अपने दूसरे हाथ से दबा लिया और दोबारा से पहले हाथ को मेरी चूत के नीचे ले जाकर मेरी चूत को सहलाने लगा।
"ओहह आह्ह आह्ह्ह !! प्लीज़ दलवीर मत करो !!!! प्लीज़ अपना हाथ नीचे से हटा लो !!!!!" मैं जोर जोर से हांफते हुए कहने लगी। परंतु उसने मेरी बात पर कोई ध्यान ना दिया और मेरी चूत को सहलाते हुए गहरे धक्के मारने लगा जिससे मैं एक बार दोबारा झड़ गई। मेरा पानी मेरी चूत से बाहर निकल कर मेरी टाँगों पर बह रहा था। फिर से दो बार झड़ने के कारण मेरी टाँगें कांपने लगीं और मैंने उसे कहा- दलवीर, मेरी टांगों में बहुत दर्द हो रहा है। इसलिए प्लीज़ तुम ऊपर आकर चोद लो।
"बस कुछ देर और सहन कर लो शालू, मैं भी झड़ने वाला हूँ।" दलवीर ने चोदने की गति बढ़ाते हुए कहा।
कुछ ही मिनटों के बाद उसने मेरी कमर को बहुत जोर से अपनी ओर दबा लिया और मेरी चूत के अंदर ही झड़ने लगा। जब उसने अपना ढीला होता हुआ लंड बाहर निकाला तो उसके साथ ही उसका वीर्य भी मेरी चूत से बाहर बहने लगा।
जब उसकी सांस संयत हुई तो मैंने पूछा- क्या अब लंड महाराज की भूख-प्यास मिटी या अभी कुछ और चाहिए?
"अगर तुम कुछ और खिलाना पिलाना चाहो तो मैं फिर से लंड महाराज को जगा देता हूँ।" दलवीर हँसते हुए कहने लगा।
"नहीं ! अभी इनको सोने दो और चलो तब तक हम दोनों भी खाना खा लें !" मैंने भी हँसते हुए जवाब दिया।
फिर दलवीर ने खाना लगाने में मेरी मदद की और हम दोनों खाना खाकर एक दूसरे से चिपक कर सो गए। सुबह दलवीर उठ कर तैयार हुआ और नाश्ता करके अपने घर चला गया और मैं अपने घर को ठीक ठाक करने में लग गई।
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